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मई, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कैलाश पर्वत और रहस्य

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कैलाश पर्वत और रहस्य   कैलाश पर्वत एक अनसुलझा रहस्य कैलाश पर्वत के इन रहस्य सेना सा भी हो चुका है चकित कैलाश पर्वत इस ऐतिहासिक पर्वत को आज तक हम सनातनी भारतीय लोग शिव का निवास स्थान मानते हैं शास्त्रों में भी यह लिखा है कि कैलाश पर शिव का वास है किंतु वही नासा जैसे वैज्ञानिक संस्था के लिए कैलाश एक रहस्यमई जगह है नासा के साथ-साथ कई रूसी वैज्ञानिक ने कैलाश पर्वत पर अपनी रिपोर्ट दी है उन सभी का मानना है कि कैलाश वास्तव में कई अलौकिक शक्तियों का केंद्र है विज्ञान यह दवा तो नहीं करता है कि यहां शिव देखे गए हैं किंतु यह सभी मानते हैं कि यहां पर कई पवित्र शक्तियां जरूर काम कर रही है आइए आज हम आपको कैलाश पर्वत से जुड़े कुछ रहस्य बताते हैं कैलाश पर्वत के रहस्य रहस्य ( 1 )-: रूस के वैज्ञानिकों काम ऐसा मानना है कि कैलाश पर्वत आकाश और धरती के साथ इस तरह के केंद्र में है जहां पर चारों दिशाएं मिल रही हैं वहीं रूसी वैज्ञानिकों का दावा यह है कि यह स्थान एक्सिस मुंडी है। और इस स्थान पर व्यक्ति अलौकिक शक्तियों से आसानी से संपर्क कर सकता है धरती पर यह स्थान सबसे अधिक शक्तिशाली स्थान है रहस्य ( 2 )-: दावा

Sengol ki kahani

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  Sengol ki kahani प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को देश के नए सांसद भवन का उद्घाटन करेंगे इस दौरान पीएम मोदी तमिलनाडु के विद्वान संगोल सौंपेंगे जिसे प्रधानमंत्री ने संसद भवन के अंदर स्पीकर की सीट के पास स्थापित करेंगे इस संगोल का इतिहास देश की आजादी से जुड़ा है 15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो संगोल को पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था  वजन 800 ग्राम ऊंचाई 5 फीट और शीर्ष पर नंदी विराजमान हैं ऐतिहासिक राजदंड यानी सैंगोल एक तमिल शब्द समय से आया है जिसका अर्थ धार्मिकता है इसका वजन 800 ग्राम है और इस पर सोना चढ़ाया गया है इसकी ऊंचाई 5 फीट है और इसके ऊपर भगवान शिव की नंदी विराजमान है जो न्याय का प्रतीक है आजादी के वक्त नेहरू को सौंपा गया था 15 अगस्त 1947 को जब अंग्रेजों ने अपनी सत्ता हस्तांतरित की तो सैंगोल को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था इसके अस्तित्व में आने की कहानी भी दिलचस्प है ब्रिटिश भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पंडित नेहरू से पूछा कि जब देश को अंग्रेजों से आजादी मिलेगी तो इसके लिए क्या चीज दिया जाए जो हमेशा याद किया जाए नेह

Udayagiri and Khandagiri in Story

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Udayagiri and Khandagiri in story उदयगिरि और खंडगिरि की गुफाएं उड़ीसा में भुवनेश्वर शहर से लगभग 7 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ियों पर स्थित है एक गुफाएं भारत की प्राचीन और ऐतिहासिक गुफाओं में से एक है जिसका उल्लेख हाथी गुफा शिलालेख में कुमारी पर्वत के रूप में किया गया है इन गुफाओं के बारे में कहा जाता है कि यह जैन समुदाय द्वारा बनाई गई सबसे शुरुआती गुफाओं में से एक है बता दें कि उदयगिरि और खंडगिरि दोनों अलग-अलग गुफाएं हैं उदयगिरी में 18 गुफाएं हैं जबकि खंडगिरि में 15 गुफाएं हैं इस समूह की सबसे महत्वपूर्ण गुफा उदयगिरी के अंदर स्थित रानी गुफा है जो एक दो मंजिला मठ है इन गुफाओं को कटक गुफाओं के रूप में भी जाना जाता है यह स्थान एक महान ऐतिहासिक महत्व रखता है जो पर्यटकों और इतिहास प्रेमियों को सभी को खींचे जाने पर मजबूर कर देता है History of Udayagiri and Khandagiri Caves इन गुफाओं का इतिहास गुप्त काल में लगभग 350 से 550 ईसवी पूर्व का है जो हिंदू धार्मिक विचारों की न्यू का युग है इतिहासकारों और शोधकर्ताओं के अनुसार उदयगिरि और खंडगिरि की अधिकांश गुफाओं को दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में राजा खारवेल

Konark sun Temple story

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Konark Sun Temple Story    हिंदू धर्म में सूर्य देव की पूजा का विशेष महत्व है ज्योतिष शास्त्र में सूर्य देव को ग्रहों का राजा माना गया है वेदों पुराणों के मुताबिक सूर्य देव की आराधना से कुंडली के सभी दोष दूर होते हैं वही सभी देवताओं में सूर्य ही एक ऐसा देवता हैं जिन्हें साक्षात रूप से देख सकते हैं इनके साथ ही सूर्य देवता की रोशनी से ही जीवन संभव है यही नहीं धरती पर सूर्य ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत हैं वैदिक काल से ही सूर्य की पूजा अर्चना की जा रही है वहीं कुछ बड़े राजाओं ने सूर्य देव की आराधना की और कष्ट दूर होने एवं मनोकामना पूर्ण होने पर सूर्य देव के प्रति अपनी अटूट आस्था प्रदर्शित करने के लिए कई सूर्य मंदिरों का निर्माण भी करवाया उन्हीं में से एक कोणार्क का सूर्य मंदिर है जो कि अपनी भव्यता और अद्भुत बनावट के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध हैं और देश के सबसे प्राचीनतम ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है तो आइए हम जानते हैं सूर्य भगवान को समर्पित कोणार्क सूर्य मंदिर की स्टोरी यह मंदिर एक बेहद विशाल रथ के आकार में बना हुआ है इसलिए इसे भगवान का रथ मंदिर के नाम से भी जाना जाता है कुणाल शब्द कौ

Lingaraj Mandir Ki Kahani

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Bhuvaneswar   Ka Lingaraj Mandir लिंगराज मंदिर उड़ीसा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है यहां मौजूद मंदिरों में लिंगराज मंदिर को सबसे बड़ा मंदिर माना जाता है इस मंदिर को 10वीं या 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था लिंगराज मंदिर भगवान हरिहर को समर्पित एक हिंदू मंदिर है जो भगवान शिव और विष्णु जी का ही एक रूप है लिंगराज मंदिर के बारे में लिंगराज मंदिर भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है यह भुनेश्वर शहर का आकर्षण का केंद्र है इस शहर को भगवान शिव का शहर कहा जाता है और इसलिए यहां पर भारत के प्रमुख शिव मंदिरों में से एक लिंगराज मंदिर भी स्थापित है ऐसी मान्यता है कि लिट्टी और वसा नामक दो राक्षसों का वध मां पार्वती ने यहीं पर किया था लड़ाई के बाद जब उन्हें प्यास लगी तो भगवान शिव ने यहां पर एक कुएं का निर्माण कर सभी नदियों का आवाहन किया था लिंगराज मंदिर की विशेषता मंदिर का प्रांगण 150 मीटर वर्गाकार है और कलर्स की ऊंचाई 40 मीटर है प्रतिवर्ष अप्रैल महीने में यहां रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है इस मंदिर के दाएं तरफ एक छोटा सा कुआं ह जिसे लोग मरीचि कुंड के नाम से जानते हैं स्थानीय लोगों का ऐसा कह

गिरवर हाई स्कूल मेदनीनगर

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 राजकीयकृत +2 गिरवर हाई स्कूल मेदनीनगर के बारे में Rajkiyekrit +2 गिरवर हाई स्कूल मेदनीनगर की स्थापना 1933 ईस्वी में हुई थी और इसका प्रबंधन शिक्षा विभाग द्वारा किया जाता है यह शहरी क्षेत्र में स्थित है या झारखंड के पलामू जिले के डाल्टनगंज प्रखंड में स्थित है स्कूल में कुल 8 से 12 तक के ग्रेड होते हैं स्कूल शैक्षणिक है और इसमें संगलन प्री प्राइमरी सेक्शन नहीं है स्कूल प्राकृतिक में इन ए और स्विफ्ट स्कूल के रूप में स्कूल भवन का उपयोग नहीं कर रहा है इस विद्यालय में शिक्षा का माध्यम हिंदी है इस स्कूल तक सभी मौसम में सड़क मार्ग से पहुंचा जा सकता है इस स्कूल में शैक्षणिक सत्र अप्रैल में शुरू होता है स्कूल में सरकारी भवन है इसमें शिक्षण उद्देश्य के लिए 20 कक्षाएं हैं सभी कक्षाएं अच्छी स्थिति में हैं इसमें गैर शिक्षण गतिविधि के लिए दो अन्य कमरे हैं विद्यालय में प्रधानाध्यापक अध्यापक के लिए पृथक कक्ष है स्कूल में पक्की बाउंड्री वाल है स्कूल में बिजली का कनेक्शन है स्कूल में पीने के पानी का स्रोत हैंडपंप है और यह चालू है स्कूल में 2 लड़कों का शौचालय है और एक क्रियाशील है और लड़कियों का शौचालय है

Vat Savitri Vrat Kahani

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  क्यों की जाती है बट सवित्री की पूजा ऐसी मान्यता है कि जेठ अमावस्या के दिन वट वृक्ष की परिक्रमा करने पर ब्रह्मा विष्णु और महेश सुहागिनों को सदा सौभाग्यवती रहने का वरदान देते हैं गांव और शहरों में हर कहीं जहां वटवृक्ष है वहां सुहागिनों का समूह परंपरागत तरीके से विश्वास के साथ पूजा करता दिखाई देगा अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए बट सावित्री की पूजा जेठ की अमावस्या पर सुहागी ने करती है कई स्थानों पर वटवृक्ष के तले सुहागिनों का ताता नजर आएगा सुहाग की कुशलता की कामना के साथ सुहागिनों ने परंपरागत तरीके से वट वृक्ष की पूजा कर व्रत रखेंगी उनके द्वारा पांच प्रकार के पकवान और इतने ही प्रकार के फल तथा अनाज भी चढ़ाए जाएंगे उसके बाद वटवृक्ष को धागा लपेट कर पूजा करके पति की लंबी उम्र की कामना की जाएगी इस दिन सुहागिन महिलाएं वट वृक्ष के पेड़ की पूजा अर्चना कर अखंड सुहाग कावर मांगती है पूजा के लिए घर से सज धज के निकली वटवृक्ष के नीचे तथा अवैध रूप में पूजन करके दिखाई देंगे कई जगहों पर बट की पूजा के लिए महिलाओं घरों से ही गुलगुले पूरी खीर हलवा के साथ सुहाग का सामान लेकर पहुंचेंगे कहीं-कहीं जल प

Rajarappa Mandir

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        Rajarappa Mandir झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिका का भव्य मंदिर है रजरप्पा के भैरवी भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिका का मंदिर एक आस्था की धरोहर है असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिका मंदिर काफी लोकप्रिय है मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों मैं मतभेद है किसी के अनुसार मंदिर का निर्माण के हजार वर्ष पहले हुआ था तो कोई इसे महाभारत कालका मानता है यह दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है मां छिन्नमस्तिका के मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं बाया पाव आगे की ओर बढ़ाएं हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी है पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति चयन अवस्था में है मां छिन्नमस्तिका के गले का सांप का माला तथा मुंडमाला से सुशोभित है विक्रय और खुले केस जीभ बाहर आभूषणों से सुसज्जित मां नग्न अवस्था में दिव्य रूप में हैं दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना कटा मस्तक है इनके अगल-बगल डाकिनी और साकनी खड़ी हैं ज

RAMREKHA DHAM SIMADEGA

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  RAMREKHA DHAM SIMADEGA रामरेखा धाम एक बहुत ही पवित्र स्थान है जो कि सिमडेगा मुख्यालय से तकरीबन 26 किलोमीटर दूर है लोगों का कहना है कि 14 साल के वनवास की अवधि में भगवान श्री राम और माता सीता और लक्ष्मण ने इस जगह का भ्रमण किया था और कुछ समय के लिए यहां रहे थे अग्निकुंड चरण पादुका सीता चूल्हा गुप्त गंगा आदि जैसे कुछ पुरातात्विक संरचनाओं का यहां पता चलता है वनवास की अवधि के दौरान उन्होंने इस मार्ग का अनुसरण किया था लोगों ने भगवान राम माता सीता लक्ष्मण और हनुमान जी के साथ भगवान शिव के मंदिरों को देखने के लिए भी रामरेखा धाम जाते हैं जो कि झुके हुए गुफा में स्थित है कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल से यहां बहुत ही भव्य मेले का आयोजन किया जाता है विभिन्न राज्यों और सभी समुदाय के लोग यहां आते हैं अपनी खुशी के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं और अपनी मनोकामना की पूर्ति करते हैं रामरेखा धाम एक बहुत ही खूबसूरत पर्यटक स्थल है यहां पौराणिक चीजें मौजूद हैं रामरेखा धाम में ऐसे कई सबूत है जिससे यहां पुरातात्विक संरचनाओं का पता चलता है यहां पर सीता चूल्हा गुप्त गंगा और भगवान के चरण पादुका का निशान आज भी मौजू

Palamu Kile Ki Kahani

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  Palamu Kile ki Kahani पलामू प्रमंडल में न सिर्फ कुदरत की खूबसूरती का नजारा है बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण कई स्थान भी है जिसमें वेत्तला का पलामू किला है राजा मेदनी राय की छवि प्रजा प्रिय राजा की थी जनता की बेहतरीन के लिए उन्होंने कई कार्य किए थे कई लोकप्रिय राजा आज भी चर्चा में है राजा मेदनी राय का ऐतिहासिक किला भी पलामू प्रमंडल के बेतला में ही स्थित है पलामू प्रमंडल के पर्यटन स्थलों की श्रृंखला में आज चर्चा पलामू किले के बारे में है ताकि लोग बेहतर तरीके से इसे समझ सके निश्चित तौर पर जो लोग पलामू प्रमंडल में हैं उन्हें इस किले को अवश्य देखना चाहिए क्योंकि पलामू प्रमंडल में रहकर इस किले को ना देखना और इसमें ना जानना उचित नहीं होगा पर्यटन स्थल के चर्चा की तीसरी कड़ी में आज जानिए पुराने की पलामू किला के बारे में पलामू की गौरवशाली इतिहास का साक्षी है पलामू किला घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच कल कल बातें औरंगा नदी के किनारे स्थित है पलामू किला वैसे तो पलामू किला दो हिस्सों में है पहला हिस्सा है पुराना किला इसकी भव्यता देखते ही बनती है बताया जाता है कि पलामू के प्रसिद्ध शेरों रा