Nilambar Pitambar Ki Amar Kahani
Nilambar Pitambar Ki Amar Kahani पलामू मैं अंग्रेजों ने 1772 से ही पांव पसारना शुरू कर दिया था धीरे-धीरे अपना मजबूत ठिकाना बना लिया अंग्रेज यहां से ज्यादा और लगान वसूलने लगे थे लगान के लिए अत्याचार भी कर रहे थे इसकी वजह से पलामू के आदिवासी भयंकर आक्रोश था आजाद पंछी की तरह जीने वाले आदिवासी को गुलामी मंजूर नहीं थी nilamber-pitamber का नेतृत्व मिला तो छिटपुट होने वाला विद्रोह तूफान की तरह ताकतवर हो गया 1832 में पलामू के लोगों ने विद्रोह किया था अंग्रेजों ने बहुत क्रूर कर दिया था अंदर अगर आग सुलग रही थी विद्रोह की लेकिन धुआं बाहर नहीं देखने के सारे इंतजाम थे मौके का इंतजार हो रहा था 25 साल बाद यह मौका आया 1857 में पलामू में भी यह खबर आ गई कि रांची और हजारीबाग में अंग्रेजो के खिलाफ जबरदस्त लड़ाई आरंभ हो गई है अब अंग्रेजी शासन के दिन खत्म हो गए हैं इस हवन में कुछ और संविदा की जरूरत है फिर क्या था nilamber-pitamber ने अपने लोगों को ललकारा इस बार सब खुलकर मैदान में आ गए लोगों को लगा कि यही मौका है जबकि उनका छीना गया राज्य लौट सकता है उस समय पलामू में शेरों और खेरवार की संख्या बहुत थी यहां चेर...