Rajarappa Mandir
Rajarappa Mandir
झारखंड की राजधानी रांची से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर मां छिन्नमस्तिका का भव्य मंदिर है रजरप्पा के भैरवी भेड़ा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित मां छिन्नमस्तिका का मंदिर एक आस्था की धरोहर है असम के कामाख्या मंदिर के बाद दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में विख्यात मां छिन्नमस्तिका मंदिर काफी लोकप्रिय है मंदिर के निर्माण काल के बारे में पुरातात्विक विशेषज्ञों मैं मतभेद है किसी के अनुसार मंदिर का निर्माण के हजार वर्ष पहले हुआ था तो कोई इसे महाभारत कालका मानता है यह दुनिया के दूसरे सबसे बड़े शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है मां छिन्नमस्तिका के मंदिर के अंदर स्थित शिलाखंड में मां की तीन आंखें हैं बाया पाव आगे की ओर बढ़ाएं हुए वह कमल पुष्प पर खड़ी है पांव के नीचे विपरीत रति मुद्रा में कामदेव और रति चयन अवस्था में है मां छिन्नमस्तिका के गले का सांप का माला तथा मुंडमाला से सुशोभित है विक्रय और खुले केस जीभ बाहर आभूषणों से सुसज्जित मां नग्न अवस्था में दिव्य रूप में हैं दाएं हाथ में तलवार तथा बाएं हाथ में अपना कटा मस्तक है इनके अगल-बगल डाकिनी और साकनी खड़ी हैं जिन्हें वे रक्त पान करा रही है और सुबह भी रक्त पान कर रही है इनके गले में रक्त की तीन धाराएं बह रही है मां छिन्नमस्तिका की महिमा की पौराणिक कथाएं
मां छिन्नमस्तिका के महिमा कई पुरानी कथाओं में प्रचारित है प्राचीन काल में छोटा नागपुर मैं राज नामांक एक राजा राज करते थे राजा की पत्नी का नाम रुपमा थी इन्हीं दोनों के नाम पर इस स्थान का नाम राज रुकमा पड़ा जो बाद में रजरप्पा हो गया
एक कथा के अनुसार एक बार पूर्णिमा की रात में शिकार की खोज में राजा दामोदर और भैरवी नदी के संगम पर पहुंचे रात्रि विश्राम के दौरान राजा ने स्वप्न में लाल वस्त्र धारण किए तेज मुख मंडल वाली एक कन्या देखी
उसने राजा से कहा हे राजन इस आयु में संतान न होने से तेरा जीवन सूना लग रहा है मेरी आज्ञा मानोगे तो रानी की गोद भर जाएगी
राजा की आंख खुली तो इधर उधर भटकने लगे इसी बीच उनकी आंख स्वप्न में दिखी कन्या से जा मिली वह कन्या जल के भीतर राजा के सामने प्रकट हुई उनका रूप अलौकिक था यह देख राजा भयभीत हो उठे
राजा को देखकर वह कन्या कहने लगी हे राजन मैं छिन्नमस्तिका देवी हूं कलयुग के मनुष्य मुझे नहीं जान सकते हैं जब मैं प्राचीन काल से गुप्त रूप से निवास कर रही हूं मैं तुम्हें वरदान देती हूं कि आज से नौवें महीने तुम्हें पुत्र की प्राप्ति होगी
देवी बोली हे राजन मिलन स्थल के समीप तुम्हें मेरा एक मंदिर दिखाई देगा इस मंदिर के अंदर शिलाखंड पर मेरी प्रतिमा अंकित दिखेगी तुम सुबह मेरी पूजा कर बलि चढ़ाव ऐसा कह कर छिंद मस्ती के अंतर्ध्यान हो गई इसके बाद से ही पवित्र तीर्थ स्थल रजरप्पा के रूप में विख्यात हो गया
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवती भवानी अपनी सहेलियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गई स्नान करने के बाद भूख से उनका शरीर काला पड़ गया सहेलियों ने भी भोजन मांगा देवी ने उनसे कुछ प्रतीक्षा करने को कहा
बाद में सहेलियों के विनम्र आगरा पर उन्होंने दोनों की भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट लिए कटा सिर देवी के हाथ में आगरा व गले से तीन धाराएं निकली वाह एक धारा को अपनी सहेलियों की ओर प्रवाहित करने लगी तभी वह छिन्नमस्तिका कहीं जाने लगी
रजरप्पा के स्वरूप में अब बहुत परिवर्तन आ चुका है तीर्थ स्थल के अलावा यहां पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित हो चुका है आदिवासियों के लिए यह त्रिवेणी मकर सक्रांति के मौके पर लाखों श्रद्धालु आदिवासी और भक्तजन यहां स्नान कर दर्शन करने के लिए यहां आते हैं
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