RAMREKHA DHAM SIMADEGA

 


RAMREKHA DHAM SIMADEGA

रामरेखा धाम एक बहुत ही पवित्र स्थान है जो कि सिमडेगा मुख्यालय से तकरीबन 26 किलोमीटर दूर है लोगों का कहना है कि 14 साल के वनवास की अवधि में भगवान श्री राम और माता सीता और लक्ष्मण ने इस जगह का भ्रमण किया था और कुछ समय के लिए यहां रहे थे अग्निकुंड चरण पादुका सीता चूल्हा गुप्त गंगा आदि जैसे कुछ पुरातात्विक संरचनाओं का यहां पता चलता है वनवास की अवधि के दौरान उन्होंने इस मार्ग का अनुसरण किया था लोगों ने भगवान राम माता सीता लक्ष्मण और हनुमान जी के साथ भगवान शिव के मंदिरों को देखने के लिए भी रामरेखा धाम जाते हैं जो कि झुके हुए गुफा में स्थित है कार्तिक पूर्णिमा पर हर साल से यहां बहुत ही भव्य मेले का आयोजन किया जाता है विभिन्न राज्यों और सभी समुदाय के लोग यहां आते हैं अपनी खुशी के लिए भगवान से प्रार्थना करते हैं और अपनी मनोकामना की पूर्ति करते हैं रामरेखा धाम एक बहुत ही खूबसूरत पर्यटक स्थल है


यहां पौराणिक चीजें मौजूद हैं

रामरेखा धाम में ऐसे कई सबूत है जिससे यहां पुरातात्विक संरचनाओं का पता चलता है यहां पर सीता चूल्हा गुप्त गंगा और भगवान के चरण पादुका का निशान आज भी मौजूद है वनवास के दौरान मर्यादा पुरुषोत्तम राम इसी रास्ते से होकर गए थे रामरेखा धाम परिसर में प्रभु श्री राम माता सीता लक्ष्मण एवं हनुमान जी के अलावा भगवान शंकर की भी प्रतिमाएं स्थापित है वैसे तो यहां पूजा के लिए हर दिन श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है लेकिन कार्तिक मेले के समय में पूर्णिमा के मौके पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं


माता सीता के पैरों के निशान

ईचगढ़ प्रखंड के चितरी आदरडीह ऒर चिमटिया के सीमा पर स्थित चट्टान पर माता सीता के पैरों के निशान मिलते हैं कुकड़ो प्रखंड के पारगाम क्षेत्र मैं भगवान श्री राम के तीर की नोक से खोदे गए जलस्रोत लोगों के लिए कौतूहल का विषय बने हुए हैं क्षेत्र में प्रचलित दंतकथा है कि 1 दिन माता सीता स्नान करने के लिए पानी की तलाश कर रही थी पानी नहीं मिलने पर उन्होंने प्रभु श्रीराम से पानी खोजने में मदद मांगी


तीर से निकाला भूगर्भ जल स्रोत

प्रभु श्री राम ने अपने तीर धनुष से भूगर्भ से जल स्रोत निकाला जहां माता सीता ने स्नान किया उसे लोग अब सीतानाला के नाम से जानते हैं गर्मी के मौसम में भी सीतानाल का पानी नहीं सूखता है इसी नाले के किनारे एक अर्जुन का पेड़ था कहते हैं कि माता सीता ने पेड़ की डाली पर अपने बाल रखकर सुख आए थे उस पेड़ की डाली पर अंत तक बाल जैसा काला रेशा निकलता रहता था 15 से 16 वर्ष पहले पेड़ गिर गया जिसके बाद लोग पेड़ की डाली को अपने घर ले गये आज भी लोग वहां जाकर अपनी इच्छा की पूर्ति करते हैं और भगवान से कामना करते हैं  यह एक पौराणिक दार्शनिक स्थल है

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