Pure ek hazar:- पूरे एक हजार
Pure ek hazar:- पूरे एक हजार
म***** नसीरुद्दीन रोज सुबह अपने आंगन में प्रार्थना करता था और चिल्लाकर कहता था या अल्लाह मुझे 1000 दिनार दे हजार यानी हजार एक कम एक ज्यादा 999 भी देगा तो मैं उसे हाथ तक नहीं लगाऊंगा सुन लेना मुला की प्रार्थना उसके पड़ोसी रहीम चाचा रोज सुनते थे उन्होंने सोचा देखें मुल्लाह सच कह रहा है या झूठ एक दिन मुल्लाह प्रार्थना कर रहा था कि रहीम चाचा ने एक थैली में 999 दिनार डालकर मुला के आगे फेंक दी और छुपकर देखने लगे कि अब मुल्लाह क्या करता है
मुला ने प्रार्थना के बाद आंखें खोली तो सामने थैली पड़ी पाई इधर उधर देखा कोई नहीं उसने हाथ उठाकर खुशी से अल्लाह का शुक्रिया अदा किया फिर खोलकर सिक्के गिने तो 999 निकले तो आखिर तूने 999 ही दिए कह कर म***** ने थैली उठाई और घर में रख दी 2 दिन हुए 4 दिन हुए अब मूल्य ना तो पहले की तरह प्रार्थना करता नो थैली बाहर निकालता रहीम चाचा से रहा नहीं गया म***** के पास गए और बोले क्या बात है आजकल प्रार्थना बंद है
मुल्लाह ने कहा पता नहीं कौन कमबख्त मेरे आगे 999 दिनार वाली थैली थक गया अल्लाह तो गणित में इतना कच्चा हो नहीं सकता वह थैली भी मेरी है और 999 डिनर भी रहीम चाचा ने कहा क्या बात करते हो तुम क्यों ऐसा करोगे भला मैं देखना चाहता था कि तू सच बोल रहा है या झूठ तू कहता था कि 999 भी हुए तो तू हाथ नहीं लगाएगा लेकिन तूने चुपचाप थैली लेकर घर में रख ली पकड़ा गया ना झूठ
लेकिन तुम्हें मेरे और मेरे अल्लाह के बीच पढने की जरूरत क्या थी म***** ने कहा ठीक है भूल हुई लौटा दे मेरी थैली रहीम चाचा ने कहा कौन सी थैली वही जिसमें 999 दिनार हैं वह तो अल्लाह ने मुझे दी है जो गणित में कच्चा नहीं है उससे भी गिनने में भूल हो सकती है रहीम चाचा अपना सा मुंह लेकर चले गए
दूसरे दिन फिर आए और बोले ऐसा करते हैं हम शहर काजी के पास चलते हैं उन्हें सारी बात बता देते हैं फिर वह जो इंसाफ करें बोल मंजूर है मुन्ना ने कहा मंजूर है मगर एक समस्या है क्या रहीम चाचा ने पूछा मेरे पास ढंग के कपड़े नहीं है का जी के पास क्या ऐसे ही फटे हाल जाऊंगा चल 1 दिन के लिए कपड़े मैं दे दूंगा एक और समस्या है मुझसे इतनी दूर पैदल नहीं जाया जाएगा चल मेरा गधा ले लेना ठीक है
तो दूसरे दिन दोनों पहुंचे शहर काजी के पास रहीम चाचा नेताजी को पूरी दास्तान सुनाई और अंत में कहा थैली मेरी है मुझे वापस दिलवाई जाए तुम्हारा कोई गवाह है काजी ने पूछा गवाह तो रहीम चाचा का कोई नहीं था काजी कुछ कहते उससे पहले ही म***** बोला हुजूर दूसरे की चीज को अपनी बताना इनकी आदत है अभी थैली को अपना बता रहे हैं कुछ देर बाद कहेंगे मैंने जो कपड़े पहन रखे हैं वह भी इनके हैं हां तो है ही मेरे ही तो है यह कपड़े रहीम चाचा ने कहा देखा देखा हुजूर अब यह कपड़े भी इनके हो गए अब कहेंगे वह गधा भी इनका है जिस पर बैठकर मैं आया हूं हां तो गधा तो मेरा है ही रहीम चाचा ने भोलेपन से कहा अब आप ही इंसाफ करें हुजूर नसीरुद्दीन ने नम्रता से कहा का जी ने रहीम चाचा को अपनी आदत से बाज आने को कहा अपना वक्त बिगाड़ने के लिए उन्हें डांटा और थैली म***** को दे दी अपना सा मुंह लेकर रहीम चाचा लौट आए थैली भी गवाही कपड़ों और गधों से भी हाथ धो बैठे चार पांच रोज गुजर गए फिर एक दिन मुल्लाह नसीरुद्दीन रहीम चाचा के घर गए और बोले यह लोग तुम्हारी थैली यह कपड़े और यह संभालो अपना गधा लेकिन एक बात हमेशा ध्यान में रखना आइंदा मेरे और अल्लाह के बीच में आने की कोशिश मत करना
Rajivkamal. Com
Good kahani
जवाब देंहटाएं