गुरु और शिष्य की कहानी


 एक जंगल में एक साधु महात्मा रहा करते थे उनकी ख्याति दूर-दूर तक कई राज्यों में फैली हुई थी लोग उनके ज्ञान और समझदारी की वजह से उन से प्रभावित होकर बहुत दूर-दूर से उन्हें खोजते हुए इस जंगल में आ जाया करते थे

1 दिन दो युवक इन महात्मा की खोज में इस जंगल में आ पहुंचे जहां एक बड़े ही सुंदर रमणीय स्थल पर महात्मा अपना गुरुकुल बनाकर रखा करते थे वह दोनों ही इन महात्मा को अपना गुरु स्वीकार कर उन से शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे महात्मा कई युवकों को शिक्षा दे चुके थे लेकिन वे किसी भी युवक को शिक्षा देने से पहले उसकी कसौटी किया करते थे इन दोनों युवकों को महात्मा ने देखा तो वह उन्हें अच्छे घर से लगे और उनकी परीक्षा लेने की महात्मा ने टाइप किया

महात्मा ने दोनों युवकों से कहा कि मैं तुम्हें अपना शिष्य जरूर बना लूंगा लेकिन उसके लिए तुम्हें मेरी एक शर्त पूरी करनी पड़ेगी युवकों ने महात्मा से कहा कि आप जो भी कहेंगे हमें माने हैं

महात्मा ने गुरुकुल के कमरे में रखी दो कबूतरों की मूर्तियां लाकर दोनों युवकों को एक-एक थम आते हुए कहा इन कबूतरों की मूर्तियों को तुम जीवित कबूतर ही मानो और तुम्हें यह करना है कि जब तुम्हें कोई देख ना रहा हो तब तुम्हें इन कबूतरों की गर्दन मरोड़ देनी है जब तुम ऐसा करने में सफल हो जाओ तो मेरे पास चले आना

दोनों युवकों ने अपने-अपने कबूतरों को ध्यान से देखा दोनों ही कबूतर बहुत सुंदर से और उन पर बहुत अच्छे से रंग और आकृतियां बनी हुई थी दोनों के मन में ख्याल आया कि इतनी आसान और सरल परीक्षा से गुरु जी हमें क्या सीख चाहते हैं दोनों ने अपने कबूतर लिए और अलग-अलग दिशा में जंगल में चले गए एक युवक जंगल में थोड़ी दूर गया जहां एक सुनसान मैदान उसे दिखा उसने चारों तरफ अपनी नजर घुमाकर देखा और यह निश्चित करने के बाद कि उसे कोई भी नहीं देख रहा है उसने अपने साथ लाए कबूतर की गर्दन मरोड़ दी वह वापस गुरु के पास चला गय

दूसरा युवक भी जंगल में दूसरी तरफ एक सुनसान जगह पर पहुंचा और एक पेड़ के नीचे खड़ा रहकर हर तरफ से नजर घुमा कर देखने के बाद जब वह कबूतर की गर्दन मरोड़ ने लगा तब उसकी नजर अचानक पेड़ के ऊपर बैठे अन्य पंक्तियों पर पड़ी क्योंकि उसे ऐसा करते हुए पंछी देख रहे थे इसलिए उसने कबूतर की गर्दन नहीं मरोड़ी युवक थोड़ी देर सोचने के बाद झाड़ियों में छिप गया और वहां पर कबूतर की गर्दन मरोड़ ने की कोशिश करने लगा लेकिन वहां पर भी उसकी नजर झाड़ियों में बैठी सीट पतंगे और मक्खियों पर पड़ गई और वहां पर भी युवा यह काम पूरा न कर सका फिर कुछ सोचने के बाद युवक ने एक जमीन में बड़ा सा गड्ढा बनाया और उसमें उतरकर कबूतर की गर्दन तोड़ने लगा कबूतर की मूर्ति को छूते ही उसने देखा कि कबूतर की आंखें उसे देख रहे हैं इसलिए उसने कबूतर की मूर्ति की आंख ढक दी फिर उसने सोचा कि वह खुद तो अपने आप को ऐसा करते हुए देखी रहा है इसलिए उसने अपनी आंख पर पट्टी बांध ली अब वह निश्चित हो गया कि ना ही कोई अन्य प्राणी या कबूतर की मूर्ति या वह खुद भी उसको ऐसा करते हुए देख पा रहा है और कबूतर की गर्दन पर हाथ रख कर मरोड़ ने ही वाला था कि उसने अंदर से एक आवाज आई वह आवाज उसकी अंतरात्मा की थी युवक अब अच्छे से समझ गया था कि गुरु जी इस छोटी स सरल सी दिख रही परीक्षा से उन्हें क्या सीख देना चाहते थे

युवक बिना उस कबूतर के गर्दन मरोड़े ही गुरु के पास पहुंचा गुरु के पास जाकर युवक ने गुरु से माफी मांगते हुए कहा कि गुरु जी मुझे क्षमा कर दीजिए मैं आपका दिया यह काम पूरा नहीं कर पाया क्योंकि जब भी मैं ऐसा करने की कोशिश करता तो मुझे कोई ना कोई देख रहा होता मैं मैंने यह सुनिश्चित कर लिया कि बाहरी दुनिया में मुझे कोई देख नहीं रहा है तब भी मेरी अंतरात्मा और परमात्मा मुझे देख रहा था इसलिए मैं इस परीक्षा में पूरी तरह से असफल हो गया

महात्मा ने उस युवक को शाबाशी देते हुए कहा कि तुम इस कसौटी में असफल नहीं बल्कि पूरी तरह से सफल हुए हो इस कसौटी से मैं तुम दोनों को यही शिक्षा देना चाहता था कि हम जो भी कार्य करते हैं वह उस परमात्मा से उस परम शक्ति से कभी  नहीं सकते हैं इसलिए हमें कोई भी कार्य उस परमात्मा को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए और जब हम ऐसा करते हैं तो हम कभी गलत नहीं कर पाते हैं 

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