Haar ki jeet:- हार की जीत


 Haar ki meet:- हार की जीत

गांव के बाहर के मंदिर में बाबा भारती नाम के एक साधु रहते थे उनके पास एक बढ़िया घोड़ा था जिसे वे सुल्तान कहते थे वैसा घोड़ा आसपास के किसी गांव में ना था बाबा भारती अपने हाथ से सुल्तान को दाना खिलाते थे जब तक शाम को बाबा सुल्तान पर 810 मिल का चक्कर ना लगा लेते उन्हें चैन ना आता इस इलाके में खड़क सिंह नाम का एक डाकू था लोग उसके नाम से कांपते थे खड़क सिंह ने भी सुल्तान के बारे में सुना एक दिन वह बाबा भारती के पास पहुंचा बाबा ने पूछा कहो खड़क सिंह क्या हाल है खड़क सिंह ने उत्तर दिया मैं बिल्कुल ठीक हूं बाबा ने पूछा कहो मेरे पास कैसे आए खड़क सिंह ने कहा आप के घोड़े सुल्तान की बहुत प्रशंसा सुनी थी इसीलिए देखने चला आया उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी कहते हैं देखने में भी बड़ा सुंदर है 

बाबा भारती उसे अस्तबल में ले गए बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से खड़क सिंह ने घोड़ा देखा आश्चर्य से ऐसा बांका घोड़ा उसने कभी ना देखा था बाल को किसी अधीरता से बोला बाबा जी इसकी चाल ना देखी तो क्या बाबा जी भी मनुष्य ही थे अपनी वस्तु की प्रशंसा दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय अधीर हो उठा घोड़े को खोलकर बाहर ले गए घोड़ा वायु वेग से उड़ने लगा उसकी चाल देखकर खड़क सिंह के हृदय पर सांप लोट गया जाते-जाते उसने कहा बाबा जी मैं यह घोड़ा आपके पास रहने न दूंगा बाबा भारती डर गए और उन्हें रात को नींद ना आती सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी कई मास बीत गए और वह ना आया यहां तक कि बाबा भारती को सावधान हो गए संध्या का समय था बाबा सुल्तान पर सवार होकर घूमने जा रहे थे घोड़े को देख-देख वेब फूले न समाते थे सहसा एक ओर से आवाज आई ओ बाबा इस बंगले को भी सुनते जाना आवाज में करुणा थी बाबा ने घोड़े को रोक लिया देखा एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पढ़ा कर आ रहा है हाथ जोड़कर उसने कहा बाबा मुझ पर दया करो रामा वाला यहां से 3 मील दूर है मुझे वहां जाना है घोड़े पर चढ़ा लो परमात्मा भला करेगा बाबा भारती ने घोड़े पर अपाहिज को सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे

सहसा उन्हें एक झटका सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तन कर बैठा है और घोड़े को दौड़ा के लिए जा रहा है बाबा भारती थोड़ी देर देखते रहे फिर चिल्लाकर बोले जरा ठहर जाओ खड़क सिंह खड़क सिंह ने घोड़ा रोक दिया और बाबा से कहा बाबा जी माया घोड़ा और न दूंगा

बाबा ने कहा भाई मुझे घोड़ा ना चाहिए या तुम्हारा है बस तुम मेरी एक बात सुनते जाओ मेरी प्रार्थना है कि इस घटना का किसी के सामने जिक्र ना करना खड़क सिंह का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया उसने पूछा बाबा जी इसमें आपको क्या डर है सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया लोगों को यदि इस घटना का पता चल गया तो वह किसी गरीब का विश्वास ना करेंगे यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से मुंह मोड़ लिया बाबा भारती चले गए परंतु उनके शब्द खड़क सिंह के कानों में गूंज रहे थे रात के अंधेरे में खड़क सिंह अस्तबल में पहुंचा फाटक खुला था उसने चुपचाप घोड़े को अस्तबल में बांधा और चला गया सुबह स्नान करने के बाद बाबा भारती के पास रोज की तरह असफल की ओर बढ़ गए फाटक पर पहुंचकर उन्हें अपनी भूल का पता चला वह वहीं रुक गए सुल्तान ने बाबा के पैरों की आवाज पहचान ली और वह हिना हिना या खुशी से दौड़ते हुए अंदर घुसे और घोड़े के गले से लिपट गए 

फिर वह संतोष से बोले अब कोई गरीब की सहायता से मुंह ना मोडेगा 

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