मेहनत का फल

 

राजस्थान के एक छोटे से गांव में दो भाई रहते थे दोनों बहुत ही मेहनती थे वह मिट्टी के बर्तन बनाया करते थे एक दिन उनके गांव में एक विदेशी महिला घूमने आई उसने उनके बर्तन देखें और उनकी बहुत तारीफ की उसने उनके दाम पूछे उन्होंने उसका दाम सिर्फ ₹5 बताएं यह सुनकर वह महिला काफी अचंभित हुई उसने कहा कि तुम लोग अपने बर्तन शहर में क्यों नहीं ले जाते वहां इन्हीं बर्तनों के दाम ₹5 की जगह 500 रुपए में मिलते हैं उन दोनों को यह बातें समझ आ गई उन्होंने भी ऐसा ही करने का निर्णय किया एक दिन सुबह सुबह दोनों भाई अपने सारे बर्तनों को लेकर शहर की तरफ निकल पड़े रास्ते में एक बहुत बड़ा रेगिस्तान पढ़ता था उनका सारा खाना और लगभग आधा पानी भी खत्म हो चुका था उनका जानवर प्यासा था इसलिए आगे बढ़ने को तैयार ही ना हुआ तभी उन्हें रेगिस्तान में दूर एक जगह घने घास दिखे तब उन्होंने सोचा कि अगर यहां घना घास है तो पानी भी जरूर होगा दोनों भाइयों ने वहां खोदना शुरू किया सुबह से शाम हो गई पर पानी ना निकला थक हार कर छोटे भाई ने हार मान ली लेकिन बड़ा भाई हार मानने को तैयार न था वह मेहनत करता गया आखिरकार अगली सुबह वहां पानी निकल ही पड़ा यह देखकर उसकी खुशी का कोई ठिकाना ना रहा उसने अपने छोटे भाई को बुलाया और दोनों ने जी भर कर पानी पिया उन्होंने अपने मवेशी को भी जी भर कर पानी पिलाया और वे शहर पहुंच गए वहां उनके बर्तनों के बहुत ही अच्छे दाम मिले जिससे दोनों भाई बहुत खुश हुए इस प्रकार उनकी मेहनत रंग लाई और उनका बहुत ही फायदा हुआ इस प्रकार उन्हें अपनी मेहनत का फल बहुत अच्छा मिला



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