ईर्ष्या का परिणाम

 

किसी गांव में एक गरीब बुढ़िया रहती थी एक दिन उसे एक फकीर ने एक अद्भुत दीपक देते हुए कहा बुढ़िया माई यह बड़ा अद्भुत दीपक है आंगन को लिपकर इस दीपक को बीच में रखकर जलाना और हाथ जोड़कर इससे कुछ भी मांग लेना जो कुछ भी उस समय इस दीपक से मांगो गी यह देगा किंतु एक ही बात इस दीपक में अजीब है यह जो तुम्हें देगा उससे दुगना तुम्हारे पड़ोसी को अवश्य देगा खुशी-खुशी दीपक को लेकर घर आई आंगन को लिपकर उसने जलता हुआ दीपक आंगन के बीच में रखकर कहा है करामाती दीपक मेरे घर का एक कमरा रुपयों से भर जाए बुड़िया ने आश्चर्य से देखा कि घर का एक कमरा रूपयो से भर गया था बुढ़िया अपने को ना रोक सकी इस चमत्कार पूर्ण घटना को बताने के लिए वह पड़ोसी के घर की ओर दौड़ी अचानक उसने देखा कि पड़ोसी इधर ही भागा आ रहा है वह बोला रवि की मां आज जाने क्या हो रहा है हमारे घर के दो कमरे रुपयों से भर गए हैं बुडीया को बहुत दुख हुआ रुपयों से भरा हुआ कमरा उसे भारी कष्ट दे रहा था बुढ़िया ने फिर दीपक को प्रणाम किया और बोली दीपक महाराज कृपा करके मेरी एक आंख फोड़ दो और एक पैर तोड़ दो तुरंत ही बुढ़िया की एक आंख और एक पैर टूट जाता है किंतु बुडीया बहुत खुश थी क्योंकि पड़ोसी अंधा ही बन गया था बल्कि अपने दोनों पैर भी खो चुका था अब यह प्रश्न उठता है कि अपनी एक आंख और एक पैर खो कर भी बुड़िया प्रसन्न थी उसको क्या मिल गया था बुड़िया इसलिए प्रसन्न थी क्योंकि पड़ोसी अंधा और अपाहिज बन गया था ईष्या आदमी से बड़े से बड़ा पाप करा देती है इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी दूसरों से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए

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