Shahpur Kila Ki Kahani


Shahpur Kila Ki Kahani

कभी था चेरों राजाओं की शान अब पड़ा है वीरान

पलामू में 200 वर्षों तक शासन करने वाले चेरों वंशी राजाओं के शान की निशानी शाहपुर किला वर्तमान में वीरान है कभी शासन का केंद्र बिंदु रहा यह किला फिलहाल अपनी बदहाली पर आंसू बहाता नजर आ रहा है पलामू जिला मुख्यालय मेदिनीनगर से सटे शाहपुर स्थित कोयल नदी तट पर अवस्थित करीब 250 वर्ष पुराना शाहपुर किला आज भी चेरो राजाओं की गौरवशाली गाथा बयान कर रहा है किले की टूटती दीवारे टूटी फूटी फरसों का साम्राज्य की गाथा कहते नजर आते हैं स्थानीय लोगों में चलानी किला के नाम से जाना जाता है

वर्गाकार ऊंचे टीले पर बनी इमारत की ऊंची दीवारें बड़े-बड़े बुलंद दरवाजे इसकी व्यथा की कहानी कहते नजर आते हैं किले से कोयल नदी का मनोहारी नजारा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता नजर आता है शाहपुर किला का निर्माण 1770 के दशक में तत्कालीन चेरों वंशी ए राजा गोपाल राय ने कराया था 13 सप्ताह के अवसान काल में पलामू का राजकाज यहीं से संचालित होता था 1 मार्च 1771 को पलामू किला अंग्रेजों के नियंत्रण मे हो जाने के बाद वर्षों तक शाहपुर किला में ही राजा का निवास रहा था बताया जाता है कि शाहपुर किला से पलामू किला तक सुरंग बना हुआ था करीब 200 वर्ष के चेरों शासनकाल की गौरव गाथा है आज भी कहानियों के रूप में क्षेत्र में कही सुनी जाती है चेरों वंश के प्रतापी राजा मेदनीराय के शासनकाल में दूध दही की नदियां बहती थी।

कहां जाता है कि धनी धनी राजा मेदनीया घर घर बाजे मथानिया अर्थात राजा मेदिनी राय के शासनकाल में प्रजा खुशहाल थी। सभी घरों में दही माथा जाता था शाहपुर किला प्रांगण में राजा मेदनी राय व चेरो वंश के अंतिम शासक चुरामन राय व उनकी पत्नी चंद्रावती देवी की तस्वीर चेरों वंश की गौरव गाथा की स्मृति दिलाती है

पलामू प्रमंडल के विभिन्न गांव में बसी चेरो जनजाति समाज में आज भी चेरों वंश की सुशासन की गाथाएं कहानियों के रूप में कही सुनी जाती है फिलहाल कोयल नदी के तट पर बसा ऐतिहासिक महत्व का किला अपने जीर्णोद्धार की बाट जोह रहा है


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