Puri Jagannath Mandir ki Kahani


 

Puri ke Jagannath Mandir ki Kahani

पुरी जगरनाथ मंदिर का सबसे पहला प्रमाण महाभारत के 1 पर्व में मिलता है कहा जाता है कि सबसे पहले सावर आदिवासी विश्व बसु ने नील माधव के रूप में इनकी पूजा की थी आज भी पूरी के मंदिरों में कई सेवक हैं जिन्हें बैठे पति के नाम से जाना जाता है


इस मंदिर को राजा इंद्रद्युम्न ने बनवाया था !-

राजा इंद्रद्युम्न मालवा के राजा थे जिनके पिता का नाम भारत और माता सुमति था राजा इंद्रद्युम्न को सपने में हुए से जगन्नाथ के दर्शन कई ग्रंथों में राजा इंद्रद्युम्न और उनके यज्ञ के बारे में विस्तार से लिखा है उन्होंने यहां कई विशाल यज्ञ किए और एक सरोवर बनवाया एक रात भगवान विष्णु ने उनको सपने में दर्शन दिए और कहा नीलांचल पर्वत की एक गुफा में मेरी एक मूर्ति है उसे नीलमाधव कहते हैं तुम एक मंदिर बनवा कर उसमें मेरी यह मूर्तियां स्थापित कर दो राजा ने अपने सेवकों को नीलांचल पर्वत की खोज में भेजा  उसमें से एक था ब्राह्मण विद्यापति
विद्यापति ने सुन रखा था कि खबर कबीले के लोग नीलमाधव की पूजा करते हैं और उन्होंने अपने देवता की इस मूर्ति को नीलांचल पर्वत की गुफा में छुपा रखा है वह भी वह यह भी जानता था कि सब्र कबीले का मुखिया विश्वास नीलमाधव का उपासक है और उसी ने मूर्ति को गुफा में छुपा रखा है चतुर विद्यापति ने मुखिया की बेटी से विवाह कर लिया आखिर में वह अपनी पत्नी के जरिए नीलमाधव की गुफा तक पहुंचने में सफल हो गया उसने मूर्ति चुरा ली और राजा को लाकर दे दी


विश्वासु अपने आराध्य देव की मूर्ति चोरी होने से बहुत दुखी हुआ अपने भक्तों के दुख से भगवान भी दुखी हो गए भगवान गुफा में लौटा लौट गए लेकिन साथ ही राजा इंद्रद्युम्न से वादा किया कि वह एक दिन उनके पास जरूर लौटेंगे बशर्ते कि वह एक दिन उनके लिए विशाल मंदिर बनवा दे राजा ने मंदिर बनवा दिया और भगवान विष्णु से मंदिर में विराजमान होने के लिए कहा भगवान ने कहा कि तुम मेरी मूर्ति बनाने के लिए समुद्र में तैर रहा पेड़ का एक बड़ा टुकड़ा उठा कर लाओ जो द्वारिका से समुद्र में तैर कर पूरी आ रहा है राजा के सेवकों ने उस पेड़ के टुकड़े को तो ढूंढ लिया है लेकिन सब लोग मिलकर भी उस दिन को नहीं उठा पाए तब राजा को समझ आ गया कि नीलमाधव के अनन्य भक्त सबर कविले के मुखिया विश्ववासु को ही सहायता लेनी पड़ेगी
सब उस वक्त हैरान रह गए जब विश्ववासु भारी-भरकम लकरी को उठाकर मंदिर तक ले आए

अब बारी थी लकड़ी से भगवान की मूर्ति गढ़ने की राजा के कारीगरों ने लाख कोशिश कर ली लेकिन कोई भी लकड़ी में एक सैनी तक भी नहीं लगा सका तब तीनो लोक के कुशल कारीगर भगवान विश्वकर्मा एक बूढ़े व्यक्ति का रूप धारण करके आए उन्होंने राजा को कहा कि वे नीलमाधव की मूर्ति बना सकते हैं लेकिन साथ ही उन्हें अपनी शर्त भी रखी कि वह एक ही दिन में मूर्ति बनाएंगे और अकेले में बनाएंगे कोई उनको बनाते हुए नहीं देख सकता उनकी शर्त मान ली गई लोगों को आरिफ छेनी हथौड़ी की आवाजें आती रहीं राजा इंद्रद्युम्न की रानी ने अपने को रोक नहीं पाए वह दरवाजे के पास गई तो उसे कोई आवाज सुनाई नहीं दी वह घबरा गए उसे लगा गुलाबी कारीगर मर गया है उसने राजा को इसकी सूचना दी अंदर से कोई आवाज सुनाई नहीं दे रही थी तो राजा को भी ऐसा ही लगा सभी संतो और चेतावनी को दरकिनार करते हुए राजा ने कमरे का दरवाजा खोलने का आदेश दिया


जैसे ही कमरा खोला गया तो बूढ़ा व्यक्ति गायब था और उसमें तीन अधूरी मूर्तियां मिली पड़ी थी भगवान नीलमाधव और उनके भाई के छोटे-छोटे हाथ बने थे लेकिन उनकी टांगें नहीं जबकि सुभद्रा के हाथ पांव बनाए ही नहीं गए थे राजा ने इसे भगवान की इच्छा मानकर इन्हीं अधूरी मूर्तियों को स्थापित कर दिया तब से लेकर आज तक तीनो भाई बहुत इसी रूप में विद्यमान है

वर्तमान में जो मंदिर है वह सातवीं सदी में बनवाया था हालांकि इस मंदिर का निर्माण ईसा पूर्व में भी हुआ था यहां स्थित मंदिर तीन बार टूट चुका है 1174 इसी में ओडिशा शासक और नदीम देव ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था मुख्य मंदिर के आसपास लगभग 30 छोटे बड़े मंदिर स्थापित है

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