संतोष का फल:-Santosh ka phal


 संतोष का फल:-Santosh ka phal

अफ्रीका में अकाल पड़ गया लोग भूखों मरने लगे एक छोटे नगर में एक धनी दयालु पुरुष थे उन्होंने सभी छोटे बच्चों को प्रतिदिन एक रोटी देने की घोषणा की दूसरे दिन सवेरे एक बगीचे में सब बच्चे इकट्ठे हुए उन्हें रोटियां बांटी जाने लगी रोटियां छोटी बड़ी थी सब बच्चे एक दूसरे को धक्का देकर बड़ी रोटी पाने का प्रयत्न कर रहे थे केवल एक छोटी लड़की एक और चुपचाप खड़ी थी वह सब के बाद आगे बड़ी टोकरी में सबसे छोटी अंतिम रोटी बची थी उसने उसे प्रसन्नता से ले लिया और घर चली आई दूसरे दिन फिर रोटियां बाटी गई उस बेचारी लड़की को आज भी सबसे छोटी रोटी मिली लड़की ने घर पहुंचकर जब रोटी थोड़ी तो रोटी में से सोने की एक मुहर निकली उसकी माता ने कहा मुहर उस धनी को दे आओ लड़की मोहर देने के लिए दौड़ी धनी ने उसे देखकर पूछा तुम क्यों आई हो

लड़की ने कहा मेरी रोटी से यह मुहर निकली है आटे में गिर गई होगी देने आई हूं आप अपनी मुहर ले लीजिए धनी ने कहा नहीं बेटी यह तुम्हारे संतोष का पुरस्कार है लड़की ने सिर हिला कर कहां पर मेरे संतोष का फल तो मुझे मिल गया क्योंकि मुझे धक्के नहीं खाने पड़े धनी बहुत प्रसन्न हुआ उसने उसे अपनी धर्म पुत्री बना लिया और उसकी माता के लिए मासिक वेतन निश्चित कर दिया वही लड़की उस धनी की उत्तराधिकारी नहीं बनी

शिक्षा:- इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें जो भी जितना मिलता है उसी में संतुष्ट रहना चाहिए

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