चिड़िया का घोंसला:-Chidiya ka ghosala


 चिड़िया का घोंसला:-Chidiya ka ghosala

दोपहर का समय था सूर्य की तेज गर्मी से पृथ्वी का शरीर तक रहा था वृक्षों के पत्ते मुरझाए हुए थे मानो किसी और भयंकर कांड की आशंका से सांस ही साधे खड़े हैं इसी समय अपने छोटे से घोसले के भीतर बैठे हुए चातक पुत्र ने कहा पिताजी बाहर की सहज कोमल वनस्थली के वर्तमान रूखे पान की तरह ही वह स्वर कुछ निराश था चातक ने अपनी चोंच कुमार की पीठ पर फिरते हुए प्यार से कहा क्या है बेटा है और क्या प्यास के मारे चोट तक आ गए हैं बेटा अधीर ना हो समय सदा एक सा नहीं रहता है चातक ने कहा तब उसके पुत्र ने कहा तो यही तो मैं भी कहता हूं समय सदा एक सा नहीं रहता पुरानी बातें पुराने समय के लिए थी आप अब भी उन्हें इस तरह छाती से चिपकाए हुए हैं जिस तरह वानरी मरे हुए बच्चे को चिपकाए रहती है बरसात की बात आप जो ते रहिए अब मुझसे यह नहीं साध सकता बरसात के सिवा हम और किसी का जल ग्रहण नहीं करते यही हमारे कुल का व्रत है इस व्रत के कारण अपने गोत्र में ना तो किसी की मृत्यु हुई और ना कोई दूसरा अनर्थ आप कहते हैं कोई आना नहीं हुआ मैं कहता हूं प्यास की यंत्रणा से बढ़कर और क्या अनर्थ होगा जहां से भी होगा मैं जल ग्रहण कर लूंगा हेयर कर पंख फड़फड़ाने लगा मानो उसने उस श्रव्य वचनों और कानों के बीच में कोलाहल की परी खासी खड़ी कर देनी चाहिए थोड़ी देर तक चुप रह कर वह बोला बेटा धैर्य रख अपने इस व्रत के कारण ही पानी बरसता है और धरती माता की गौर हरी भरी होती है यह व्रत इस तरह नष्ट कर देने की वस्तु नहीं है

लाडले बेटे ने कहा व्रत पालन करते हुए इतने दिन हो गए पानी का कहीं निशान तक नहीं है गर्मी कैसी पड़ रही है कि धरती के नदी नाले सब सुख गए फिर सूर्य के और निकट रहने वाले आकाश के मेघा में पानी तक ही कैसे सकता है बेटा पृथ्वी का निर्वाह है इसी पुण्य से उसे जीवन दान मिलेगा भोजन का पूरा स्वाद और पूरी तृप्ति पानी के लिए थोड़ी सी सुधा सहन करना आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है

पिताजी मैं थोड़ी सी सुधा से नहीं डरता परंतु यह भी नहीं चाहता कि सुधा ही सुधा सहन करता रहूं मैं ऐसा व्रत व्यर्थ समझता हूं देवताओं का अभिशाप लेकर भी मैं इसे तोडूंगा बरसात को भी तो सोचना चाहिए था कि उसके बिना किसी के प्राण निकल रहे हैं आदमी ने मेरे ऊपर विश्वास करके कृषि की रक्षा के लिए नाहर तालाब और कुओं का बंदोबस्त कर लिया है किसी ने अपनी तरफ सिर नहीं दिलाया कि मैं तो बरसात के सिवा और किसी काजल नहीं लूंगी हमें क्यों इस तरह कष्ट सहे आप चाहे रखे या छोड़े माया झंझट ना मानूंगा चातक ने देखा मामला बिगड़ रहा है इस तरह ना मानेगा कहा यह बताओ तुम जल कहां से ग्रहण करोगे क्या तक पुत्र चुप उसने अभी तक इस बात पर विचार ही नहीं किया था वह सोचता था जिस प्रकार लाखों जीव जंतु जल पीते हैं उसी प्रकार में भी पियूंगा परंतु वह प्रकार कैसा है यह उसे समझ ना आया था लड़के को चुप देखकर पिता ने समझा कमजोरी यही है वह जानता था कि कमजोरी के ऊपर से ही आक्रमण करना भी जाए की पहली सीढ़ी है बोला चुप कैसे रह गए चातक पुत्र ने कहा जहां से और दूसरे ग्रहण करते हैं वहीं से मैं भी करूंगा पिता ने कहा पड़ोस में वह पोखरी है अनेक पशु पक्षी और आदमी भी वहां जल पीते हैं तुम वहां जल्दी सकोगे बोलो है हिम्मत

चातक पुत्र को उस पोखरी के याद से ही शरीर में सिहरन आ गई उसमें कितनी गंदगी है सूखे पत्ते डंठल आदि गिरकर उसमें करते रहते हैं कि बुलबुल आते हुए उसमें साफ दिखाई दे सकते हैं लोग उसमें कपड़े धोने आते हैं या गंदे करने कई बार सोचने पर विवश समझ ना सका था एक बार एक आदमी को अंजुली से पानी पीते देख उसने पिता से कहा था देखो पिताजी यह कैसा विनीत जीव है अवश्य ही उसने अपने व्रत का जिक्र उस समय नहीं किया था परंतु उसके मन में उसी का गर्व छलक उठा था और किस समय वह पिता से कैसे कहे कि मैं उस पोखरी का पानी पियूंगा

चातक बोला बेटा अभी तुम ना समझ हो चाहे जहां से पानी ग्रहण करना इस समय तुम आसान समझ रहे हो परंतु जब इसके लिए बाहर निकलोगे तब तुम्हें मालूम पड़ेगा हमारी प्यास के साथ करोड़ों की प्यास है और तृप्ति के साथ करोड़ों की तृप्ति है तुझसे अकेले तृप्त होते कैसे बनेगा चातक पुत्र इस समय अपने हॉट को पूरा करने वाली कोई युक्ति सोच रहा था पिताजी की बात बिना सुने वह बोला मैं गंगा जल ग्रहण करूगा चातक ने कहा गंगा जी तो यहां से 5 दिन की उड़ान पर हैं तुम नहीं मानते तो जाओ परंतु यदि तुमने और कहीं एक बूंद भी जल ग्रहण किया तो हमें मुंह न दिखाना चाहता पुत्र प्रणाम करके फुर्र से उड़ गया

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