एकता में बल

 

कबूतरों का राजा चित्रक अपने साथियों को लेकर एक जंगल के ऊपर से उड़ता हुआ जा रहा था अचानक एक कबूतर चिल्लाया देखो देखो नीचे अनाज के बहुत से दाने बिखरे पड़े हैं हम भूखे हैं यहां उतरकर आसानी से हम अपनी भूख मिटा सकते हैं चित्रक ने कहा पागलपन मत करो भला ऐसे भी कहीं अनाज के दाने बिखरे हुए हो सकते हैं अवश्य ही यह दाने किसी ने हमें फसाने के लिए बिखेरे हैं हमें लोग में नहीं पड़ना चाहिए नीलू नाम के कबूतर ने कहा महाराज चित्र आपने ही घबरा रहे हैं नीचे उतरकर हम कुछ ही देर में अनाज के इन दानों को खा कर फिर आकाश में उड़ने लगेंगे देखते ही देखते सारे कबूतर नीचे उतारकर अनाज के दानों पर टूट पड़े और जल्दी-जल्दी उन्हें खाने लगे अचानक कबूतरों को लगा कि वे किसी शिकारी के जाल में फंस गए हैं वह घबरा गए कुछ ने रोना शुरू कर दिया और कुछ नीलू कबूतर को भला बुरा कहने लगे चित्रक ने उन्हें समझाया भाइयों यह समय आपस में लड़ने का नहीं है अब तो एक ही उपाय है हम सब मिलकर इस जाल को पूरा कर ले चले मधुबन में कंधार

नाम का एक चूहा मेरा मित्र है वह इस जाल को काटकर हम सब को बचा लेगा सब कबूतरों ने मिलकर जोर लगाया देखते ही देखते वह जाल को लेकर उड़ चले चित्रक ने कबूतरों को तसल्ली देते हुए कहा मित्रों मधुबन पास ही है सामने उस विशाल नीम के पेड़ के नीचे एक बिल में मेरा मित्र गंधर्व रहता है अब हमें ध्यान से नीचे उतरना होगा वह सब जाल को लेकर नीचे उतरे चित्रक ने कंधार को पुकारते हुए कहा मित्र कंधार तुम कहां हो हमें इस मुसीबत से छुटकारा दिलाओ बिल में बैठे हुए कंधार बने अपने मित्र को उसकी आवाज से पहचान लिया वह तुरंत बाहर आया और बोला मित्र चित्र घबराओ नहीं मैं कुछ ही देर में इस जाल के टुकड़े-टुकड़े कर दूंगा गंधर्व ने अपने पहने दातों से जाल को कुछ ही देर में काटकर सभी कबूतरों को मुक्त कर दिया चित्रक ने अपने मित्र को धन्यवाद दिया और अपने साथियों के साथ उड़ चला इस कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है कि लोभ नहीं करना चाहिए।

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